बड़ी खबर: मनरेगा में बाल मजदूरों से कराई जा रही मजदूरी साथ ही मनरेगा भ्रष्टाचार भी हुआ उजागर, जिम्मेदार मौन ?

मुख्य संपादक - ओंकार नाथ वर्मा 

UP Samachar Plus 

महराजगंज, 20 नवम्बर। महराजगंज जिले के सदर विकास खण्ड के ग्राम बेलवा काजी में चल रहे मनरेगा खड़ंजा कार्य में बाल मजदूरी का मामला सामने आया है। इस मामले में न केवल बच्चों से काम कराया जा रहा है, बल्कि स्थानीय प्रशासन और ग्राम प्रधान पर भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोप भी उठ रहे हैं। ग्राम पंचायत बेलवा काजी में जिस साइट पर 50 मजदूरों की हाजिरी लगाई गई थी, उस पर मौके पर केवल पांच नाबालिक बच्चे और दो व्यस्क मजदूर ही काम करते हुए पाए गए। जो बाल मजदूर काम पर लगाए गए हैं उनकी उम्र 10 से 12 वर्ष ही है जो बाल मजदूरों ने खुद ही बताया है।

ग्राम प्रधान का बयान- "काम ब्लॉक प्रमुख के कहने पर हो रहा है"

मौके पर मौजूद नाबालिक बच्चों से जब पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि वे बरगदवा राजा के ग्राम प्रधान रामसवारे के कहने पर काम करने आए हैं। वहीं, जब दो व्यस्क मजदूरों से इस बारे में जानकारी ली गई, तो उन्होंने भी यही कहा कि बच्चों को काम पर भेजने की बात ग्राम प्रधान ने कही थी। यह स्थिति और भी चौंकाने वाली बन गई, जब ग्राम प्रधान ने खुद दावा किया कि यह कार्य उन्होंने नहीं, बल्कि ब्लॉक प्रमुख के निर्देश पर कराया है। ग्राम बेलवा काजी के ग्राम प्रधान से पूछने पर उनका कहना था कि यह कार्य उनके द्वारा नहीं कराया जा रहा इससे उनका कोई लेना-देना नहीं है।

महिला मजदूरों को हटाए जाने का आरोप

दिलचस्प बात यह है कि काम कर रहे दोनों व्यस्क मजदूरों का कहना है कि पहले कुछ महिलाएं भी काम पर आई थीं, लेकिन उन्हें अचानक हटा दिया गया। उन्हें यह बताया गया कि अब बच्चों को काम पर लाया जाएगा, जबकि पहले यहां महिलाओं को इस कार्य में लगाया गया था। यह मामला स्थानीय प्रशासन की लापरवाही और भ्रष्टाचार को उजागर करता है।

क्या जिम्मेदारों पर होगी कार्रवाई?

बाल श्रम कानून के तहत किसी भी बच्चे को शारीरिक श्रम में शामिल करना गैरकानूनी है। मनरेगा जैसे रोजगार कार्यक्रमों में बच्चों को काम पर लगाए जाने का मामला गंभीर कानूनी उल्लंघन है। सवाल यह है कि क्या जिला प्रशासन इस मामले में कोई कार्रवाई करेगा? या फिर यह मामले ऐसे ही दबा दिए जाएंगे, जैसा कि अक्सर होता आया है?

स्थानीय लोगों का कहना है कि ग्राम प्रधान, सचिव और रोजगार सेवक इस योजना के माध्यम से अपनी जेबें भर रहे हैं। मजदूरों की बड़ी संख्या में काम पर न आना और सिर्फ दो व्यस्क तथा पांच बाल मजदूरों का काम पर दिखना, यह संकेत देता है कि कहीं न कहीं गड़बड़ी जरूर है। क्या इस पूरे प्रकरण में प्रशासन की चुप्पी भ्रष्टाचार की तरफ इशारा करती है?

मनरेगा योजना का उद्देश्य गरीबों को रोजगार देना है, लेकिन अगर इसमें भ्रष्टाचार और बाल श्रम का प्रयोग किया जाए, तो इसका उद्देश्य ही व्यर्थ हो जाता है। यदि ग्राम प्रधान और अन्य जिम्मेदार अधिकारी बच्चों से काम करा रहे हैं, तो यह न केवल उनके अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि प्रशासन की नाकामी और अनदेखी का भी परिणाम है।

आखिरकार, जिम्मेदार कौन?

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले में प्रशासन क्या कदम उठाता है। क्या बाल मजदूरी करने वालों पर कोई कठोर कार्रवाई की जाएगी? या फिर यह मामला भी समय के साथ रेत में खो जाएगा? इस मामले ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या मनरेगा की योजनाओं का दुरुपयोग किया जा रहा है और क्या प्रशासन इसे रोकने में सक्षम है?

मनरेगा योजना में हो रही अनियमितताओं और बाल मजदूरी के मामले ने प्रशासन की कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़ा किया है। यह केवल एक स्थानीय मुद्दा नहीं है, बल्कि यह उस बड़े सिस्टम का हिस्सा है, जो ग्रामीण रोजगार योजनाओं के नाम पर भ्रष्टाचार और शोषण को बढ़ावा दे रहा है। अब यह देखना होगा कि प्रशासन इस मामले में क्या कदम उठाता है और क्या इसे गंभीरता से लेकर कार्रवाई की जाएगी।


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